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जि॒ह्वा मे॑ भ॒द्रं वाङ् महो॒ मनो॑ म॒न्युः स्व॒राड् भामः॑। मोदाः॑ प्रमो॒दा अ॒ङ्गुली॒रङ्गा॑नि मि॒त्रं मे॒ सहः॑ ॥६ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

जि॒ह्वा। मे॒। भ॒द्रम्। वाक्। महः॑। मनः॑। म॒न्युः। स्व॒राडिति॑ स्व॒ऽराट्। भामः॑। मोदाः॑। प्र॒मो॒दा इति॑ प्रऽमो॒दाः। अ॒ङ्गुलीः॑। अङ्गा॑नि। मि॒त्रम्। मे॒। सहः॑ ॥६ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:20» मन्त्र:6


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! (मे) मेरी (जिह्वा) जीभ (भद्रम्) कल्याणकारक अन्नादि के भोग करनेहारी (वाक्) जिससे बोला जाता है, वह वाणी (महः) बड़ी पूजनीय वेदशास्त्र के बोध से युक्त (मनः) विचार करनेवाला अन्तःकरण (मन्युः) दुष्टाचारी मनुष्यों पर क्रोध करनेहारा (स्वराट्) स्वयं प्रकाशमान बुद्धि (भामः) जिससे प्रकाश होता है (मोदाः) हर्ष, उत्साह (प्रमोदाः) प्रकृष्ट आनन्द के योग (अङ्गुलीः) अङ्गुलियाँ (अङ्गानि) और अन्य सब अङ्ग (मित्रम्) सखा और (सहः) सहन (मे) मेरे सहायक हों ॥६ ॥
भावार्थभाषाः - जो राजपुरुष ब्रह्मचर्य, जितेन्द्रियता और धर्माचरण से पथ्य आहार करने, सत्य वाणी बोलने, दुष्टों में क्रोध का प्रकाश करनेहारे, आनन्दित हो अन्यों को आनन्दित करते हुए, पुरुषार्थी, सब के मित्र और बलिष्ठ होवें, वे सर्वदा सुखी रहें ॥६ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(जिह्वा) जुहोति शब्दमन्नं वा यया सा जिह्वा (मे) (भद्रम्) कल्याणकरान्नभोजिनी (वाक्) वक्ति यया सा (महः) पूज्यवेदशास्त्रबोधयुक्ता (मनः) मननात्मकमन्तःकरणम् (मन्युः) दुष्टाचारोपरि क्रोधकृत् (स्वराट्) बुद्धिः (भामः) भाति येन सः (मोदाः) हर्षा उत्साहाः (प्रमोदाः) प्रकृष्टाऽऽनन्दयोगाः (अङ्गुलीः) करचरणाऽवयवाः (अङ्गानि) शिर आदीनि (मित्रम्) सखा (मे) (सहः) सहनम् ॥६ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! मे जिह्वा भद्रं वाङ् महो मनो मन्युः स्वराड् भामो मोदाः प्रमोदा अङ्गुलीरङ्गानि मित्रं च सहो मे सहायो भवेत् ॥६ ॥
भावार्थभाषाः - ये राजजना ब्रह्मचर्य्यजितेन्द्रियत्वधर्म्माचरणैः पथ्याहाराः सत्यवाचो दुष्टेषु क्रोधाविष्कारा आनन्दन्तोऽन्यानानन्दयन्तः पुरुषार्थिनः सर्वसुहृदो बलिष्ठा भवेयुस्ते सर्वदा सुखिनः स्युः ॥६ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे राजपुरुष ब्रह्मचर्य, जितेंद्रियता व धर्माचरणाने यथायोग्य आहार घेतात, त्यांची वाणी सत्य असून, जे दुष्टांवर क्रोध करतात. स्वतः आनंदात राहून इतरांना आनंदित करतात ते पुरुषार्थी, सर्वांचे मित्र व बलवान बनून नेहमी सुखी राहतात.